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मंजिल की तलाश में

 मंजिल की तलाश में मैं भटकता रहा इधर उधर संघर्षों का दौर जारी रहा कई बार इतनी ऊंचाई तक चढ़के गिर गया बार बार विफल होने से हिम्मत अब जवाब दे चुकी थी आखिरी बार कि वह मेहनत कभी नहीं भूलेगी जब मैं मंजिल तक पहुंच गया

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चांदनी रात थी हल्की बरसात थी

चांदनी रात थी हल्की बरसात थी वह धीरे धीरे मेरे करीब होती जा रही थी दिल की बात कह देने मे सिर्फ चंद लम्हों की दूरी थी मगर इजहार कर नहीं पाया ना जाने कैसी मजबूरी थी

वादे से मुकरना उसकी आदत है

 वादे से मुकरना उसकी आदत है मेरा दिल उसके प्यार में पागल है ऐसा लगता है बिना ठोकर खाए सुधरेगा नहीं क्या बताएं कैसी मेरी हालत है